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Katyayni Temple Vrindavan || राधारानी ने श्रीकृष्ण को पाने के लिए की थी मां कात्यायनी के इस शक्तिपीठ की पूजा

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Katyayni Mandir Vrindavan
Katyayni Temple Vrindavan

भगवान कृष्ण की नगरी में वृन्दावन में देवी के 51 शक्तिपीठों में से एक कात्यायनी पीठ स्थित है। माँ कात्यायनी मंदिर (Katyayni Mandir) वृन्दावन के सबसे प्राचीन मंदिरो में से एक है, माँ कात्यायनी अनादि काल से वृन्दावन में यमुना जी के किनारे इसी स्थान पर विराजमान है। इस मंदिर का नाम प्राचीन सिद्धपीठ में आता है। बताया जाता है कि यहां माता सती के केश गिरे थे, इसका प्रमाण शास्त्रों में मिलता है। नवरात्र के मौके पर देश-विदेश से लाखों भक्त माता के दर्शन करने के लिए यहां आते हैं।

कात्यायनी (Katyayni) मंदिर के पीछे की असली कहानी-

Shiv Puran में उल्लेख है कि देवी सती (भगवान शिव की पत्नी) के पिता “दक्षप्रजापति” ने अपनी राजधानी कनखल में दक्ष के द्वारा एक विराट यज्ञ का आयोजन किया गया जिसमें उन्होंने न तो भगवान शिव को आमंत्रित किया और न ही अपनी पुत्री सती को।

सती ने रोहिणी को चंद्रमा के साथ विमान से जाते देखा और सखी के द्वारा यह पता चलने पर कि वे लोग उन्हीं के पिता दक्ष के विराट यज्ञ में भाग लेने जा रहे हैं, सती का मन भी वहाँ जाने को व्याकुल हो गया। भगवान शिव के समझाने के बावजूद सती की व्याकुलता बनी रही और भगवान शिव ने अपने गणों के साथ उन्हें वहाँ जाने की आज्ञा दे दी।

परंतु वहाँ जाकर भगवान शिव का यज्ञ-भाग न देखकर सती ने घोर आपत्ति जतायी और दक्ष के द्वारा अपने (सती के) तथा उनके पति भगवान शिव के प्रति भी घोर अपमानजनक बातें कहने के कारण माता सती ने भगवान शिव का अपमान अपमान होते देख यज्ञ अग्नि में कूद गईं। इससे भगवान शिव क्रोधित हो गए जिन्होंने सती के जलते शरीर को अपने कंधों पर ले लिया और तांडव नृत्य (विनाश का नृत्य) किया।

Vaishno Devi Temple, Vrindavan

पौराणिक कथा के अनुसार जब भगवान विष्णु ने चारों ओर सामूहिक विनाश देखा तो उन्होंने भगवान शिव को सामान्य करने की कोशिश की और अपने चक्र से सती के जलते शरीर को टुकड़ों में काट दिया। ऐसा कहा जाता है कि विभिन्न स्थान जहां देवी सती के अंग गिरे थे, वे शक्ति पीठ स्थान बन गए। ऐसे 108 स्थान माने जाते हैं, जिनमें से 51 ही आज ज्ञात हैं। ऐसा कहा जाता है कि देवी सती के बाल बृज में गिरे थे और उस स्थान को कात्यायनी पीठ के नाम से जाना जाता है।

वृंदावन में माँ कात्यायनी (Katyayni Shaktipith) मंदिर में स्थापित भगवान गणेश की मूर्ति की एक प्राचीन, रोचक और अनोखी कहानी है-

श्री सिद्ध गणेश-

एक अंग्रेज, श्री डब्ल्यू.आर यूल, कलकत्ता में एटलस इंश्योरेंस कंपनी लिमिटेड के साथ पूर्वी सचिव के रूप में काम करते थे। 1911-1912 में, उनकी पत्नी विदेश जा रही थी और जयपुर से खरीदी गई भगवान गणेश की एक मूर्ति अपने साथ ले गई। वह लंदन में अपने घर गई और मूर्ति को लिविंग रूम में रख दिया।

shree sidh ganesh
श्री सिद्ध गणेश

एक शाम उनके घर में एक पार्टी का आयोजन किया गया जिसमें उनके दोस्तों ने भाग लिया। उन्होंने उससे अनोखी मूर्ति के बारे में पूछा। श्रीमती यूल ने उन्हें बताया कि यह “हाथी की सूंड वाले हिंदू भगवान” है उसके दोस्तों ने फिर मूर्ति को सेंटर टेबल पर रख दिया और मूर्ति का मजाक बनाने लगी। एक व्यक्ति ने भगवान गणेश के मुंह के पास एक चम्मच भी रखा और पूछा कि मुंह कहां है।

उस रात रात के खाने के बाद, श्रीमती यूल की बेटी को तेज बुखार आया और वह चिल्लाने लगी कि हाथी की सूंड वाला खिलौना उसे निगलने के लिए आ रहा है। डॉक्टरों ने सोचा कि वह विचलित थी और इसलिए इस तरह बात कर रही थी। लेकिन वह यही दोहराती रही और रात भर डरती रही। श्रीमती यूल ने इस घटना के बारे में सब कुछ कलकत्ता में अपने पति को लिखा। उनकी बेटी ने किसी दवा या इलाज का कोई जवाब नहीं दिया।

Meera Bai – Ancient Temple in Vrindavan

एक दिन श्रीमती यूल ने स्वप्न में देखा कि वह अपने बगीचे के गेस्ट हाउस में बैठी हैं। शाम को सूरज ढल रहा था। अचानक, एक सौम्य और दयालु व्यक्ति, जिसके घुंघराले बाल थे, लाल आँखें चमक रही थीं, हाथ में नुकीला, बैल पर सवार होकर, अंधेरे से उसकी ओर आ रहा था। वह कह रहा था, “मेरे बेटे, भगवान को हाथी की सूंड के साथ, तुरंत भारत भेज दो; नहीं तो मैं तुम्हारे परिवार को नष्ट कर दूंगा।” वह अगली सुबह घबरा गई, उसने तुरंत खिलौने (भगवान गणेश की मूर्ति) का एक पार्सल बनाया और भारत में अपने पति को डाक से भेज दिया।

भारत में भगवान गणेश की मूर्ति गार्डन हेंडरसन के कार्यालय में कुछ दिनों तक रही। जल्द ही कलकत्ता से पुरुषों और महिलाओं ने भगवान सिद्ध गणेश के दर्शन के लिए कार्यालय में आना शुरू कर दिया। लोगों की भीड़ के कारण ऑफिस का सारा काम ठप हो गया। श्री यूल ने अपने अधीनस्थ बीमा एजेंट श्री केदार बाबू से पूछा कि मूर्ति का क्या किया जाना चाहिए।

श्री केदार बाबू तब मूर्ति को  अपने घर ले गए और उनकी पूजा करने लगे। इसके बाद भक्त भगवान गणेश के दर्शन के लिए केदार बाबू के घर आने लगे।वृंदावन में, उन दिनों, स्वामी केशवानंद जी महाराज पूजा के “पंचायत” सिद्धांतों के अनुसार हिंदू सनातन धर्म के पांच प्राथमिक देवताओं की मूर्तियाँ बनवाने की प्रक्रिया में थे। श्री कात्यायनी देवी की “अष्टधातु” (8 धातु मिश्रण) की मूर्ति कलकत्ता में बनाई जा रही थी और श्री भैरव चंद्रशेखर (भगवान शिव) की मूर्ति जयपुर में बनाई जा रही थी।

जब स्वामी केशवानंद जी महाराज इस बात पर विचार कर रहे थे कि भगवान गणेश की मूर्ति कहाँ से बनाई जाए, माँ देवी कात्यायनी देवी ने उन्हें बताया कि भगवान गणेश की एक मूर्ति श्री केदार बाबू के साथ उनके घर पर थी। माँ ने कहा कि जब तुम मुझे कलकत्ता से लाते हो तो तुम मेरे बेटे को भी साथ लाते हो।

Gopishwar Mahadev Temple, Vrindavan

स्वामी केशवानंद जी जब कात्यायनी देवी की मूर्ति लाने कलकत्ता गए, तो केदार बाबू उनके पास गए और कहा, “गुरुदेव, मैं ठीक हूँ। मैं आपसे मिलने वृंदावन आने की योजना बना रहा था। मेरे पास भगवान गणेश की मूर्ति है। हर रात मेरे सपने में वह मुझसे कहते हैं कि जब श्री कात्यायनी देवी की मूर्ति वृंदावन जाती है, तो आप मुझे उनके साथ भेज देते हैं। केदार बाबू ने स्वामी केशवानंद जी से अनुरोध किया कि वे उनसे भगवान गणेश की मूर्ति ले लें। “ठीक है, आप मूर्ति को रेलवे स्टेशन ले आओ, मैं ‘तूफान एक्सप्रेस’ को वृंदावन ले जाऊँगा। जब माँ जाएगी तो उसका बेटा भी जाएगा”

इस प्रकार, श्री सिद्ध गणेश (भगवान गणेश) की मूर्ति महान योगी स्वामी केशवानंद जी महाराज द्वारा वृंदावन में राधा बाग में श्री कात्यायनी देवी के मंदिर में स्थापित की गई थी।

राधारानी ने सखियों सहित श्रीकृष्ण को पाने के लिए की थी मां कात्यायनी (Katyayni) के इस शक्तिपीठ की पूजा-

maa katyayni shakti peeth, real image
maa katyayni shakti peeth, real image

श्रीमद् भागवत में किया गया है उल्लेख देवर्षि श्री वेदव्यास जी ने श्रीमद् भागवत के दशम स्कंध के 22वें अध्याय में उल्लेख किया है-

कात्यायनि महामाये महायोगिन्यधीश्वरि।

नन्दगोपसुतं देवि पतिं मे कुरु ते नम:॥

हे कात्यायनि! हे महामाये! हे महायोगिनि! हे अधीश्वरि! हे देवि! नन्द गोप के पुत्र हमें पत‍ि के रूप में प्राप्‍त हों। हम आपकी अर्चना एवं वंदना करते हैं।

इसलिए भगवान ने किया महारास-

राधारानी ने गोपियों के साथ भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए इसी कात्यायनी पीठ की पूजा की थी। माता कात्यायनि ने उन्हें वरदान दे दिया लेकिन भगवान एक और गोपियां अनेक, ऐसा संभव नहीं था। इसके लिए भगवान कृष्ण ने मां कात्यायनि(Katyayni) के वरदान को साक्षात करने के लिए महारास किया।

वृन्दावन में श्रीराधाकृष्ण के महारास का दिन

माँ कात्यायनी(Katyayni) के इस मंदिर में होती है हर मनोकामना पूरी-

तब से आज तक यहां कुंवारे लड़के और लड़कियां नवरात्र के मौके पर मनचाहा वर और वधु प्राप्त करने के लिए माता का आशीर्वाद पाने के लिए आते हैं। मान्यता है जो भी भक्त सच्चे मन से माता की पूजा करता है, उसकी मनोकामना जल्द पूरी होती है। हर साल नवरात्र के मौके पर यहां मेले का भी आयोजन किया जाता है।

भगवान कृष्ण ने भी की थी माँ कात्यायनी (Katyayni) की पूजा-

स्थानीय निवासियों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने कंस का वध करने से पहले यमुना किनारे माता कात्यायनी को कुलदेवी मानकर बालू से मां की प्रतिमा बनाई थी। उस प्रतिमा की पूजा करने के बाद भगवान कृष्ण ने कंस का वध किया था।

इन्होंने करवाया माँ कात्यायनी (Katyayni) मंदिर का निर्माण-

माँ कात्यायनी पीठ मंदिर का निर्माण फरवरी 1923 में स्वामी केशवानंद ने करवाया था। मां कात्यायनी के साथ इस मंदिर में पंचानन शिव, विष्णु, सूर्य तथा सिद्धिदाता श्री गणेशकी मूर्तियां हैं। लोग मंदिर का आध्यात्मिक वातावरण देखते ही श्रद्धालु मंत्रमुग्ध हो जाते हैं और दिल और दिमाग में शांति पाते हैं।

माँ कात्यायनी(Katyayni) मंदिर वृंदावन खुलने का समय-

ग्रीष्मकाल-

प्रातः काल : 07:00 बजे से 11:00 बजे तक 

संध्याकाल : 05:00 बजे से 08:00 बजे तक ।

शीतकाल-

प्रातः काल : 07:00 बजे से 11:00 बजे तक

संध्याकाल आरती : 04:00 बजे से 07:30 बजे तक।


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