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Shri Radha Madan Mohan Ji Temple, Vrindavan | श्री राधा मदन मोहन जी मंदिर, वृंदावन

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Shri Radha Madan Mohan Ji Temple, Vrindavan

Shri Radha Madan Mohan Ji Temple, Vrindavan

Shri Radha Madan Mohan Ji Temple

Shri Radha Madan Mohan Ji Temple, Vrindavan

Shri Radha Madan Mohan Ji Temple श्री यमुना जी के किनारे वृन्दावन में स्थित है 5000 वर्ष पूर्व इस वृन्दावन धाम में श्री राधा और कृष्ण जी ने लीलाएँ की थी | श्री राधाकृष्ण की मधुर पूर्ण लीला लुप्त होने के कारण Chaitanya Mahaprabhu (चैतन्य महाप्रभु) के प्रिय पार्षद Sanatan Goswami (श्री सनातन गोस्वामी जी) ने काशी में दो महिने की शिक्षा लेकर लुप्त तीर्थ को प्रकाश के लिए बृज में भेजा।

वह धीरे – धीरे कई स्थानों की खोज करते – करते इस Vrindavan Dham (वृन्दावन धाम) में आये | सनातन गोस्वामी जी वृन्दावन आकर द्वादश आदित्य टीला पर भजन किया। कई सालों तक भजन करने के उपरांत वह भिक्षा मांगने जाया करते थे।

Story of Shri Madan Mohan JI – (श्री मदन मोहन जी की कहानी)

कुछ दिन बाद Sanatan Goswami (सनातन गोस्वामी जी) मथुरा में ओंकार चौबे के घर से भिक्षा माँग रहे थे । वहाँ सनातन गोस्वामी जी ने देखा कि चौबे जी के घर में एक 5 वर्ष का बालक खेल रहा था। सनातन गोस्वामी जी ने ओंकार चौबे जी की धर्म पत्नी से पूछा – हे माता यह बालक आपका है । माता ने जबाब दिया – बाबा मेरा तो नहीं है यह मुझे कुछ दिन पहले यमुना किनारे खेलता दिखाई दिया और मैं इसे अपने घर ले आयी।

मैंने इस बालक से कहा कि यदि तू मुझे परेशान करेगा तो मैं तुझे साधु महात्मा को दे दुंगी और अब में ही इसका पालन करती हूँ और इसका नाम मदन मोहन है।

सनातन गोस्वामी भिक्षा लेकर वृन्दावन आ गए और कुछ दी बाद Madan Mohan (बालक मदन मोहन) ने सोचा कि चौबे जी के यहाँ कोई संतान भी नहीं है और अब मैं यहाँ से जाना चाहता हूँ तभी मदन मोहन क याद आया कि माता ने कहा था कि यदि तुम मुझे परेशान करोगे तो तुम्हे साधु को दे दूंगी।

तब बालक मदन मोहन मन ही मन सोचने लगे यही मैं परेशान नहीं करुँगा तो माता मुझे कभी नहीं भेजेंगी और अब मेरा यहाँ से जाने का वक्त आ गया है।

एक दिन Sanatan Goswami (सनातन गोस्वामी जी)  भिक्षा मांगने आये तो Madan Mohan (मदन मोहन जी) उद्दम करने लगे और माता को बहुत परेशान किया तो माता कहने लगी कि मैं तुमको आज साधु के साथ भेज दूंगी जब Sanatan Goswami (सनातन गोस्वामी) आये तो कहने लगी कि महाराज इस बालक को अपने साथ ले जाओ।

सनातन गोस्वामी जी पहचान गए कि यह कोई साधारण बालक नहीं है और वह उसे अपने साथ लेकर वृन्दावन चल दिए रास्ते में बालक से कहने लगे – मेरे पास तो अंगा बाटी मिलेंगी कही तू माखन मिश्री माँगे मैं तो जंगल में रहूँ कहीं तू हवेली की कैवे – यह बात सुनकर बालक मदन मोहन राजी हो गये और कहा – जैसी आपकी मर्ज़ी कुछ दिनों बाद बालक सनातन गोस्वामी से कहने लगा – तेरी अंगा बाटी तौ बगैर नमक की है नमक तो दे दे।

मदन मोहन तीखी बाते करने लगे तो सनातन गोस्वामी कहने लगे कि – जब मैं हुसैन शाह का बजीर था उस समय तो कृपा नहीं करी इतने दिनों के बाद सब कुछ छुड़वाकर पेड़ के नीचे बिठा दिया और आज नमक मांग रहे हो कल तुम मलाई मांगोगे तो मैं कहाँ से लाकर दूंगा।

Story Of Shri Radha Madan Mohan Ji 

मदन मोहन जी चुप हो गए और समझ गए यह संत भी महान है, एक दिन पंजाब का व्यापारी रामदास कपूर अपना जहाज लेकर वृन्दावन यमुना नदी के मार्ग से होते हुए आगरा जा रहा था अचानक व्यापारी का जहाज कुछ दूरी पर वृन्दावन में ख़राब हो गया।

व्यापारी परेशान होकर सनातन गोस्वामी जी के पास पंहुचा और विनती करने लगा कि महाराज मेरा जहाज ख़राब हो गया है। सनातन गोस्वामी ने पूछा – अरे व्यापारी तेरी इस नाव मैं क्या है व्यापारी ने जबाब दिया मेरी नाव में सौदा नमक भरा है और कुछ फल फूल है। सनातन गोस्वामी समझ गये कि यह सब मदन मोहन की करामात है। वही कुछ दिन पहले नमक माँग रहा था सनातन गोस्वामी ने व्यापारी से कहा कि यमुना किनारे एक बालक बैठा है उससे कहोगे , तो वह तुम्हारे जहाज को सही कर देंगा।

व्यापारी मदन मोहन के पास पहुंचे और कहने लगे हे बालक मेरा जहाज खराब हो गया है कृपया मुझ पर कृपा करें । to बालक बोला कि तुम इस रास्ते कई बार गए और कभी मेरे पास नहीं आये आज मुसीबत पड़ी तो आये हो तेरे इस जहाज में क्या है , व्यापारी बोला जहाज मैं तो कुछ भी नहीं सब कुछ खराव हो गया है केवल नमक ही बचा है मैं तो बर्बाद हो गया ।

बालक बोलै में सब कुछ सही कर दू तो क्या तू मंदिर बनबायेगा , व्यापारी ने हा कहा और जाकर जहाज देखा जहाज सही हो गया और जहाज मैं हीरे जवाहरातों से भरा देखा देखकर आश्चर्य चकित हो गया और वापस जाकर मदन मोहन के पैरों में पड़ गया ।

मदन मोहन और व्यापारी (रामदास) सनातन गोस्वामी के पास पहुंचे और कहने लगा मैं आपकी क्या सेवा कर सकता हु । तब मदन मोहन जी ने कहा – कि एक भब्य मंदिर का निर्माण कराओ और सनातन गोस्वामी ने कहा – यह तो मेरे मन की बात कह दी और व्यापारी यह सुनकर खुश हो गया।

कुछ संत बताते है कि ऐसी लीला करने के बाद मदन मोहन जी विग्रह रूप में परिवर्तित हो गए और एक मंदिर क निर्माण कराया उस मंदिर के ऊपर तीन सोने के कलश लगवायें , सनातन गोस्वामी जी ने इस मंदिर का नाम Shri Radha Madan Mohan Ji Temple  मदन मोहन मंदिर रखा , और विश्व विख्यात हो गए ।

 

History Of Madan Mohan Temple – (मदन मोहन मंदिर का इतिहास)

कालांतर के बाद औरंगजेब को मालूम हुआ ये विशाल मंदिर किस का है तो उसके सैनिकों ने कहा ये वृन्दावन धाम में Shri Radha Madan Mohan Ji Temple श्री मदन मोहन जी का मंदिर है , इस मंदिर के कलशों पर हीरे , जवाहरात जड़ित नगों की चमक दूर – दूर तक दिखाई देती है । औरंगजेब ने इस मंदिर को तुड़वाने का आदेश दिया।

जब गोस्वामी परिवार इस मंदिर में सेवायत थे और यहाँ पर परिवार के साथ दर्शन करने आया करते थे | जब उनको मालूम हुआ कि औरंगजेब मंदिर को तुड़वाना चाहता है तो उन्होंने मदन मोहन जी की मूर्ति को अपने साथ ले गए और राजस्थान के करौली में स्थापित किया जोकि आज भी करौली राजस्थान में विराजमान है। और फिर औरंगजेब ने इस मंदिर को खंडित कर कलशों को उतार लिया और आज भी खंडित होने के निशान इस मंदिर पर दिखाई देते है और यह मंदिर वृन्दावन में सबसे ऊँचे टीले पर स्थापित है।

Shri Radha Madan Mohan Ji Temple


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